दर्जी राजपूत समाज का इतिहास

दर्जी राजपूत - (एक ऐसा समुदाय जिसे राजपूतों ने बनाया):

    वे राजपूत जिन्होने राजऋिषि संत पीपाजी के उपदेश पर अथवा अहिंसक कर्मपथ का अनुशरण करते हुये अंहिसा का मार्ग अपनाया, उन राजपूतों का समुदाय आज दर्जी जाति के नाम से जाना जाता है। कालांतर के साथ इनकी पहचान दर्जी जाति से होने लगी और यह समुदाय वर्तमान में दर्जी राजपूत कहलाता है।



दर्जी राजपूत समुदाय का क्षेत्र:

मूलतः दर्जी राजपूतों समाज की जड़ें राजस्थान की भूमि से जुड़ी हैं, लेकिन समय के साथ इनका समुदाय पूरे भारत भर में फैलता चला गया, जिसमें मुख्यतः गुजरात, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश सहित देश के 28 राज्य शामिल हैं।


कैसे ‘‘दर्जी राजपूत समाज’’ के आराध्य बने राजऋिशि संत पीपाजी महाराज:

खींची राजवंश में जन्में राजा प्रताव राव चैहान को जब वैराग्य धारण हुआ, तो उन्होनें राजशाही कुरीतियां (मदिरा, मांस, बलिप्रथा) को खत्म करने का वीड़ा उठाया। सिंहासनारूद्ध हो जाने पर खींची सरदारों का एक बहुत बड़ा वर्ग सामाजिक वं धार्मिक परंपरा में परिवर्तन के पक्ष में नहीं था। उन्होने संत पीपाजी के विचारों का विरोध किया और संघर्ष अनिवार्य था और हुआ भी। 

इससे कई राजपूत उनके विरोधी हुये, तो कई पक्षधर। संत पीपाजी महाराज राजपूती कुप्रथा को खत्म कर अंहिसक मार्ग पर ले जाना चाहते थे। जिससे उनका मार्ग का अनुशरण करने वाले राजपूतों का भी पारिवारिक और सामाजिक विरोध हुआ। संत पीपाजी का अनुशरण करने वाले राजपूतों के भरण-पोषण हेतु संत पीपाजी ने अंहिसक कर्म (खेती व सिलाई) को चुना, जिसमें सबसे अधिक प्रचलित सिलाई कर्म हुआ और यह जाति दर्जी जाति के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस तरह एक बहुत बड़ा राजपूत वर्ग अहिंसक होकर दर्जी जाति में बदल गया और इस वर्ग के आराध्य बने राजऋिषि संत पीपाजी महाराज।


पिछड़ा वर्ग की दर्जी जाति का - राजपूत इतिहास

जब दर्जी जाति के बुद्धीजीवि वर्ग ने जब अपने इतिहास की खोज की तो इसकी जड़े राजपूत वर्ग से जुड़ी मिलीं। जिसका मुख्य श्रेय श्री पीपा क्षत्रिय शोध संस्थान जोधपुर को जाता है। राजऋिषि संत पीपाजी के उपदेश व अंहिसक कर्मपथ का जिन राजपूत राजाओं ने, परिवारीजनों, रिश्तेदारों ने अनुशरण किया वह निम्नानुसार हैंः-


संत पीपाजी महाराज के अहिंसक कर्मपथ (सिलाई) के अनुयायी 51 राजाः-

1. बेरिसाल सोलंकी, 2. दामोदर दास परमार, 3. गोवर्धन सिंह पंवार, 4. सोमपाल परिहार

5. खेमराज चैहान, 6. भीमराज गोहिल, 7.शम्भूदास डाबी, 8. इन्द्रराज राखेचा, 

9. रणमल चैहान, 10. जयदास खींची, 11. पृथ्वीराज तंवर, 12. सुयोधन बडगुजर

13. ईश्वर दास दहिया, 14. गोलियो राव, 15. बृजराज सिसोदिया, 16. राजसिंह भाटी

17. हरदत्त टाक, 18. हरिदास कच्छवाह, 19. अभयराज यादव, 20. राठौड़ इडरिया हरबद

21. मकवाना रामदास वीरभान, 22. शेखावत वीरभान, 23. गहलोत वीरभान

24. चावड़ा वरजोग, 25. संकलेचा मानकदेव, 26. बिजलदेव बारड़ 27. रणमल परिहार

28. अभयराज सांखला, 29. झाला भगवान दास, 30. गोहिल दूदा, 31. गोकुल दास देवड़ा

32. गौड़ राजेन्द्र, 33. चुंडावत मंडलीक, 34. हितपाल बाघेला, 35. गहलोत अमृत कनेरिया

36. भाटी मोहन सिंह, 37. दलवीर भाटी, 38. इंदा मोहन सिंह, 39. प्रभात सिंह सिंधु राठौड़

40. सुरसिंह (सूर्यमल्ल सोलंकी) , 41. उम्मेदसिंह तंवर, 42. हेमसिंह कच्छवाहा

43. गंगदेव गोहिल, 44. दुल्हसिंह टांक, 45. गोपालराव परिहार, 46. मूलसिंह गहलोत

47. पन्नेसिंह राखेचा, 48. अमराव मकवाना, 49. मुलराव चावड़ा, 50. मूलराज भाटी

51. पन्नेसिंह डाबी आदि।


संत पीपाजी महाराज की 12 रानियां व उनका वंष:-

1. गुजरात भावनगर नरेश श्री सेन्द्रकजी गोयल की पुत्री - (धीरा बाईजी), 

2. गुजरात पाटननरेश रिणधवल चावड़ाजी की पुत्री - (अंतर बाईजी)

3. गुजरात गिरनारनरेश श्री भुहड़सिंह चुड़ासमाजी की पुत्री - (भगवती बाईजी), 

4. गुजरात भुजनरेश विभूसिंह जाड़ेजा जी की पुत्री - (लिछमा बाईजी), 

5. गुजरात माणसानरेश कनकसेन चावड़ा जी की पुत्री - (विरजाभानु बाईजी) 

6. गुजरात हलवदनरेश वीरभद्रसिंह झाला की पुत्री - (सिंगार बाईजी)

7. राजस्थान करेगांव नरेश जोजलदेव दहिया जी की पुत्री - (कंचन बाईजी) 

8. राजपूताना कनहरीगढ़ नरेश कनकराजसिंह बघेला जी की पुत्री - (सुशीला बाईजी)

9. राजपूताना टोडायसिंह नरेश डूंगरसिंह सोलंकी जी की पुत्री - (स्मृति बाईजी) 

10. मध्यप्रदेश बांधवगढ़नरेश वीरमदेवजी बाघेला की पुत्री - (रमा बाईजी) 

11. मध्यप्रदेश पट्टननरेश भींजड़सिंह सोलंकी जी की पुत्री - (विजयमड़ बाईजी)

12. मालवा कनवरगढ़ नरेश यशोधरसिंह झाला जी की पुत्री - (रमाकंवर बाईजी)


भारत सरकार व राज्य सरकारों की अन्य पिछड़ा वर्ग (ओ.बी.सी.) में दर्जी जाति के नाम से है दर्जः-

जब एक बहुत बड़ा वर्ग राजपाठ त्यागकर अहिंसक होकर सिलाई कर्म को अपनाया, तो कालांतर के साथ इसकी पहचान दर्जी जाति के रूप में हुई। आर्थिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े के कारण भारत सरकार व राज्य सरकार ने इस समाज को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओ.बी.सी.) सूची रखा और इनके सभी शासकीय दस्तावेज दर्जी जाति के नाम से बनाये गये।

भ्रम व भ्रांतियांः-

‘‘दर्जी राजपूत’’ समाज अलग-अलग कहानियों को लेकर बंटा हुआ है। सबसे बड़ी भ्रांति महाराष्ट्र के संत नामदेव जी को दर्जी जाति के आराध्य के रूप में दर्शाया जा रहा है और उन्हें क्षत्रिय कुल से बताया जाता है। ‘‘पवित्र गुरू ग्रंथ साहिब’’ में संकलित सभी संतों के इतिहास को पढ़ने के बाद एवं छीपा समाज द्वारा प्रकाशित पत्रिकाओं एवं संत नामदेव से संबधित अन्य पुस्तकों को पढ़ने के बाद पता चलता हैं कि संत नामदेव जी महाराज का जन्म एक छीपा जाति में हुआ था, जो कपड़े के व्यापार से जुड़े थे तथा संत पीपाजी महाराज एक राजपूत थे, जिन्होने अहिंसक सिलाई कर्म को अपनाया। इस तरह दर्जी जाति एक राजपूत वर्ग - नामदेव छीपा जाति (छपाई करने वाले) से पूरी तरह भिन्न है और आज भी इनके बीच किसी प्रकार का मेल-मिलाप नहीं है, लेकिन सिलाई कार्य को लेकर दोनों जातियो में भ्रम की स्थिति बनी हुई है।